इसे तुम कविता नहीं कह सकते (#poetry)

इसे तुम कविता नहीं कह सकते (#poetry)

By: Lokesh Gulyani

Language: en

Categories: Society, Culture, Philosophy

Spoken word poetry in Hindi by Lokesh Gulyani

Episodes

Episode 53 - दबाओं ना
Dec 15, 2025

दब कर जीने में फ़ायदा है, ऐसा मुझे सिखाया गया। मेरी सीखने की क्षमता अच्छी थी, मैं अच्छे से सीख गया। मैने औरों को सिखाया वे भी सीख गए। हम सब सीखे-सिखाए लोग हैं।

Duration: 00:03:01
Episode 52 - मलाल
Dec 04, 2025

कभी-कभी लगता है कि मेरे साथ ज़िंदगी ने ठीक ही बर्ताव किया। अगर मुझे इससे कुछ भी ज़्यादा हासिल हो गया होता तो शायद मैं इस मुगालते में रह जाता कि मैं भी एक काबिल इंसान हूं।

Duration: 00:03:56
Episode 51 - Ex-Lover
Dec 04, 2025

एक समय के बाद आदमी का मन शराब की कड़वाहट को ही झेल सकता है, प्रेम के प्रेत को नहीं।

Duration: 00:03:08
Episode 50 - नाभि
Nov 19, 2025

चमत्कार की उम्मीद करना उसके घटने की संभावना को क्षीण ही करता है। So, let the universe do the talking while you gaze at the stars.

Duration: 00:02:54
Episode 49 - कालपुरुष
Nov 02, 2025

पता नहीं कब और कैसे मैं कालपुरुष के सामने आत्मसमर्पण करता चला गया। मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी कालपुरुष ने मुझे डराया हो पर किसी पुरुष ने तो डराया ही होगा। बेड़ा गर्क हो इन यूट्यूब चैनल वालों का।

Duration: 00:03:39
Episode 48 - मन लुच्चा
Oct 22, 2025

पीने के बाद भी मैं सही सलामत घर लौट आता हूं। इसी से पता चल जाता है कि मैं सही हूं, और डिमेंशिया अभी बहुत दूर की कौड़ी है। और फिर मैने इतनी हॉलीवुड फिल्म्स भी नहीं देखी कि सीधे कैरेक्टर में उतर जाऊं।

Duration: 00:02:54
Episode 47 - The Anti Social
Oct 14, 2025

कई बार बहुत छोटा लगता है, जब मैं अपना सिर उठा कर आकाश की ओर ताकता हूं। लगता है इतनी बड़ी कायनात में मैं कहां खड़ा हूं? इस बात की कोई महत्ता भी है?

Duration: 00:04:06
Episode 46 - तुम्हारी खुशी के लिए
Sep 25, 2025

तुम इठला कर मेरी ओर बढ़ती हो। तुम अपनी तारीफ़ सुनना चाहती हो। मैं मुंह फेर लेना चाहता हूं। तुम संगीत धीमा करके मेरे क़रीब आती जा रही हो। मैं पशोपेश में हूं कि क्या करूं कि तुम मेरे क़रीब न आओ। मैं तुम्हारे साथ, अकेला रहना चाहता हूं।

Duration: 00:03:36
Episode 45 - बिल्कुल चुप
Sep 05, 2025

हिम्मत करके मैं एस्केलेटर पर चढ़ कर मेट्रो स्टेशन के बाहर आता हूं, फिर एक ऑटोरिक्शा को हाथ दिखाता हूं और बहुत धीमी आवाज़ में बोलता हूं CP, वो मुझे बिठाता है, मुंह टेढ़ा करके थूकता है। मुझे बुरा लगता है, लगा जैसे ये मेरे हताश व्यक्तित्व पर गिरी थूक थी।

Duration: 00:03:20
Episode 44 - Rings of Saturn
Aug 15, 2025

कैसे जान लिया जाता है कि किन्हीं दो लोगों के विचार मिलते हैं। वो exact point कौन सा होता है जब हम convince हो जाते हैं की फ़ला व्यक्ति हमारे जैसा सोचता है। और अगर सोचता है तो उस गर्व किया जाना चाहिए या लज्जित होना चाहिए?

Duration: 00:04:09
Episode 43 - Comfortably Numb
Aug 04, 2025

अकेले में तुम अपनी हथेलियों को मसलते हो। फोन को घूरते हो। सैकड़ों बार व्हाट्सअप चेक करते हो। पर नहीं, एक ब्लू टिक तक नहीं। उसने तुम्हें त्यागा नहीं है, बस भूलना चाहा है।

Duration: 00:04:24
Episode 42 - Hero
Jul 27, 2025

ये कहना ग़लत होगा कि मुझे मलाल नहीं है। मलाल हैं और बहुत से हैं पर मैं यकीन से नहीं कह सकता कि दो तरफ़ा मलाल कौन-कौन से रहे। जब मैं किसी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा वो, या जब कोई मेरी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा वो।

Duration: 00:04:14
Episode 41 - Magic
Jul 23, 2025

टाटा मैजिक की पिछली सीट पर बैठा वो शख़्स कुछ बेसाख्ता बुदबुदाए जा रहा था। अब वो प्रार्थना थी या गाली, मैं कह नहीं सकता। उसकी आँखें वहशत से भरी थी। जो दिन बिताया था उसका डर उन आँखों में दिख रहा था, या आने वाले कल का, कहा नहीं जा सकता।

Duration: 00:04:06
Episode 40 - You फूल
Jul 06, 2025

भटकना तुम्हारी स्वाभाविक प्रवृति थी, the natural you. इसमें तुम्हें आनंद मिलता था, अब ये कह रहे हैं कि भटकने से तुम्हें रोकेंगे। मैं मन ही मन हंस पड़ता हूं।

Duration: 00:03:21
Episode 39 - बेवकूफ़ DNA
Jun 17, 2025

मैं लाइटर रगड़ कर चिंगारी निकाल लेता हूं और उससे मानवजाति के पूर्वजों को श्रद्धांजलि देता हूं।

Duration: 00:02:35
Episode 38 - बस दो मिनट
May 14, 2025

कहीं-कहीं किसी दीवार, खिड़की या घर को देखकर ऐसा भी लगता है, जैसे मैं यहां पहले भी आया था। इस खिड़की से मैंने भी कभी बाहर को झांका था, घाटी में आवाज़ दी थी। इस दरवाज़े से बाहर निकलते वक्त, आवारा हवा मेरे भी बालों से टकराई थी। इस दीवार पर थक कर कभी मैंने भी पीठ टिकाई थी।

Duration: 00:04:05
Episode 37 - सबसे गुस्सा
May 01, 2025

पूरे घर में वो एक कोना मय्यसर नहीं की मैं सुकून से बैठ कर कुछ पलों के लिए अपनी आँखें बंद कर सकूं। आँखें बंद करने पर चिंताओं की छाया डोलने लगती है, इसलिए मैं आँखें खुली रखता हूं।

Duration: 00:03:46
Episode 36 - कर लो दुनियां मुट्ठी में
May 01, 2025

मुझे ठीक से याद भी नहीं कि मैंने अपने आपको कमज़ोर मानना कब शुरू किया। कब से मैंने ख़ुद के लिए खड़ा होना छोड़ दिया था।

Duration: 00:02:58
Episode 35 - पितृ दोष
Mar 23, 2025

उसे भूख लगी है। उसकी मां ने रख छोड़ा है, अखबारी पन्ने में लिपटा ब्रेड पकोड़ा। उस ब्रेड पकोड़े पर नज़र है, सामने वाले घर के छज्जे पर बैठे कव्वे की। कव्वे का मानना है कि यदि वो ये ब्रेड पकोड़ा खा लेगा तो बच्चे का पितृ दोष दूर हो जाएगा।

Duration: 00:03:44
Episode 34 - मेरी मैं-मैं, मैं जानूं
Mar 11, 2025

मैं जीवन में अर्थ ढूंढते ढूंढते थक गया हूं। अब ऐसी स्थिति आ चुकी है कि ज़िंदगी के मायने ढूंढना और मतलबी होना, एक दूजे के समानांतर लगने लगा है।

Duration: 00:04:14
Episode 33 - Solo Traveler
Mar 03, 2025

मुझे काफ़ी हद तक ये बात सही लगती है कि जीवन खेद के साथ ख़त्म करने वाली यात्रा तो बिल्कुल नहीं है। अगर गौर से देखा जाए तो आनंद एक अवस्था है, जो भीतर से फूटती है। एक कस्तूरी है खुद में, जिसका हमें संभवतः ज्ञान नहीं।

Duration: 00:04:16
Episode 32 - लम्बी उड़ान
Feb 19, 2025

मुझे क्या कभी मौका मिलेगा कि मैं अपने हाथ फैला कर नीचे वादियों में कूद जाऊं और मुझे अंजाम की चिंता न हो। नीचे सूरजमुखी के फूलों से भरा मैदान हो, फूल मुझे देखते हुए मुस्कुरा रहे हों। बाहें फैला कर खड़े हों। और मैं उनके ऊपर से उड़ता चला जा रहा हूं, एक बड़ी चील की मानिंद।

Duration: 00:03:51
Episode 31 - नौकर कहीं का
Feb 13, 2025

मैं समय ख़राब करता हूं, पूरे अधिकार से। मुझे लगता है कि किसी ने मेरा समय ख़रीद कर मुझे ही पकड़ा दिया है, नौकरी की शक्ल में। मालिक बार बार यकीं दिलाता है कि उसने सिर्फ़ समय खरीदा है मुझे नहीं। मैं भी खुद को यह दिलासा देता हूं कि सिर्फ़ समय बिका है, मैं नहीं।

Duration: 00:03:38
Episode 30 - सायास अनायास
Jan 28, 2025

हम साथ बैठ कर देखी हुई फ़िल्म दुबारा देखते हैं। तुम्हें ठीक-ठीक पता है कि अगले कुछ क्षणों बाद प्रेमी, प्रेमिका का चुम्बन लेगा। तुम अपना हाथ, मेरे हाथ पर रखने का सायास प्रयास, अनायास करती हो। मैं पॉपकॉर्न निकालने के लिए अपनी हथेली को अनायास तुम्हारी हथेली से सायास बाहर को सरकाता हूँ। हम दोनों चौंकने का नाटक करते हैं, फ़िल्म चलती रहती है।

Duration: 00:04:43
Episode 30 - सायास अनायास
Jan 27, 2025

तुम अपना हाथ, मेरे हाथ पर रखने का सायास प्रयास अनायास करती हो। मैं पॉपकॉर्न निकालने के लिए अपनी हथेली को अनायास तुम्हारी हथेली से सायास बाहर को सरकाता हूं। हम दोनों चौंकने का नाटक करते हैं, फिल्म चलती रहती है।

Duration: 00:04:20
Episode 29 - Holy Water
Jan 09, 2025

मैं घर पर आकर अपना कोट उतार कर खूंटी पर टांग देता हूं। असल में मैं, ख़ुद ही वहां उस कोट के साथ टंग जाना चाहता हूं पर घर में मेरे लिए इतनी जगह मयस्सर नहीं है।

Duration: 00:03:33
Episode 28 - मेरे ठेंगे पे (FoMo)
Dec 18, 2024

सुबह उठने के साथ ही यही एक मात्र चिंता कि मैं दिख नहीं रहा, मैं बिक नहीं रहा, FoMo का शिकार मैं, गैलरी खंगाल कर एक पोस्ट का इक़बाल बुलंद करता हूं। मेरे वजूद के लिए चलो कोई तो लड़ रहा है। अब मेरी ओर झांकोगे तो मुझे भी जिंदा पाओगे।

Duration: 00:02:53
Episode 27 - गिरवी कृतज्ञता
Dec 13, 2024

जब तुम ठुकरा देते हो, एक गोल रोटी को, तो तुम ठुकरा देते हो बहुत से लोगों की मेहनत।

Duration: 00:03:37
Episode 26 - पहचान मेरी
Nov 29, 2024

मैं गिरता जा रहा हूँ, साल दर साल। झुकी नज़रें, झुकी कमर, एक झुका हुआ इंसान। कोई प्रतिक्रिया देने में इच्छुक नहीं, दुनियां जाए भाड़ में। जीभ पर फैला कड़वापन कुछ भी बोलने से रोकता है। बोलूंगा तो वो तीखा ही होगा।

Duration: 00:03:23
Episode 25 - हुनर
Nov 29, 2024

जिस दिन मालिक घिसाई को नीलम दे देता, उसे ख़ुद की सुध बुध न रहती, उसकी हालत, देसी दारू के ठेके के बाहर उकडू बैठे, दारुड़ियो सी हो जाती।

Duration: 00:01:34
Episode 24 - सर्वर डाउन है
Nov 29, 2024

कुछ टिकट मेरे जीवन में धरे के धरे रह गए। उन पर मैने यात्रा नहीं की। कभी–कभी सोचता हूं यदि कर ली होती तो जीवन क्या होता? क्या मैं वही आदमी रहता जो अब हूं?

Duration: 00:02:28
Episode 23 - कुछ अजीब प्यार है अपना
Nov 29, 2024

कुछ अजीब प्यार है अपना। जो तुम्हारे आते ही ऑटो के मीटर सा डाउन हो जाता है। तुम जल्द चले जाओगे, बस यही सोचता चला जाता है।

Duration: 00:01:22
Episode 22 - कुछ बातें
Nov 26, 2024

कुछ लड़कों को लड़कियों के घर के अंदर तक आने देना चाहिए ताकि उनके मां बाप भी देख सकें कि दुनियां में अभी भी अच्छे लड़के बचे हैं। कुछ लड़कियों को खुल कर हंसना चाहिए ताकि और लड़कियों को भी पता चले कि जीवन मुस्कुरा कर भी जिया जा सकता है।

Duration: 00:02:53
Episode 21 - गुलाबी नानसेंस
Nov 26, 2024

एक पुरुष का प्रेम स्त्री के लिए सर्वथा भिन्न होता है। पुरुष प्रेम दर्शाने के लिए अपनी इंद्रियों का इस्तेमाल करता है। वो औरत को छू कर बताता है कि उसे उस औरत से कितना प्रेम है।

Duration: 00:03:13
Episode 20 - छवि का विचार
Nov 26, 2024

सुनों! तुम कुछ भी कर लेना पर इस छवि को मेरे मन से मत निकलने देना। नहीं मांगता मैं जन्म भर का साथ। न ही तुम पर कोई अधिकार मांगता हूं। जो मांग ही लिया तो फिर प्रेम कैसे हुआ?

Duration: 00:02:19
Episode 19 - आसान है लिखना
Nov 26, 2024

आप चाहते हैं, वो रोशनी आपको फिर दिखे, मगर आपको कुछ नहीं दिख रहा। भेड़िया भी दिख जाता तो शायद आप बच जाते। मगर वो आपको गुफ़ा में घुसा कर कहीं गुम हो गया है, अब आप क्या करेंगे?

Duration: 00:02:28
Episode 18 - बत्तख
Nov 26, 2024

कभी - कभी अपने आपको कमज़ोर मान लेना चाहिए। उससे होता ये है कि बहुत बोझ हट जाता है, ख़ुद के कंधों से। हम इस मुगालते में रहते हैं कि सब कुछ हम कर रहे हैं पर बहुत कुछ है जो हमारी नजरों से परे है।

Duration: 00:02:11
Episode 17 - बाप का ब्रांड
Nov 19, 2024

आज मैं अपने बाप के ब्रांड पर आ गया। एक अलग सा ही नशा मुझ पर छा गया। वो कमरे में उड़ता धुआं, शीशे से पिघलता आब, ग्लास में अपनी शक्ल इख्तियार करता हुआ, उन शामों के कहकहे एक दीवार से उड़कर दूसरी में समाने लगे।

Duration: 00:03:50
Episode 16 - मेरे घर के बाहर
Nov 19, 2024

हर दस साल बाद, बीते दस साल व्यर्थ लगते हैं। और जब आने के मतलब का खुलासा होता है, समय ख़त्म हो चुका होता है।

Duration: 00:03:29
Episode 15 - रोटी खाना मना है
Nov 19, 2024

खेल चलते रहना चाहिए, यही एकमात्र नियम है खेल का, ये खेल भूखे पेट का है, भूखी आंखों का है, छोटे अंगिया चोली का है, ये खेल आँखों से आँखें मिला कर मांगने का है, कुछ मिल जाने पर आपस में छीनने का है।

Duration: 00:02:34
Episode 14 - बत्ती बुझाने से पहले, बत्ती बुझने के बाद
Oct 27, 2024

बत्ती बुझाने से पहले एक बार देख लेना चाहिए। लोग कमरों में हैं या नहीं? दरवाज़े बंद हैं या नहीं? चीज़ें अपनी जगह है या नहीं? दिल धड़क रहे हैं या नहीं? आँखें बंद है, या शून्य में तक रही है। और तक रही है तो क्या ठंडी दीवारों के पार देख पा रही है?

Duration: 00:03:29
Episode 13 - कमज़ोर मर्द की चिट्ठी
Oct 27, 2024

एक बारह बाय दस का कमरा कितना बड़ा हो सकता है? ये अभी हाल ही में उसे पता लगा। इस कमरे में एक बार घुसने के बाद आदमी गुम हो सकता है। वो घंटों एक जगह बैठा रह सकता है और सैंकड़ों बार जगह भी बदल सकता है।

Duration: 00:03:12
Episode 12 - ज़िंदगी मौत व्यंग्य
Oct 27, 2024

सारी उम्र जीने को कोसते रहे, किसी किस्मत नाम के कव्वे को बुलाते रहे-भगाते रहे। ऊंची पतंग भी उड़ाते रहे और कटने से भी घबराते रहे।

Duration: 00:02:14
Episode 11 - लीनियर स्ट्रिप (linear strip)
Oct 21, 2024

एक दिन शायद उन्होंने भी अपने कुएं में झांक लिया था। शायद ख़ुद को ही देख लिया था। उसके बाद वे वैसी न रही। फिर हम भी उनसे वैसे न रहे।

Duration: 00:03:38
Episode 10 - मिट्ठू बोलो राम-राम
Oct 04, 2024

सोचने वाली बात है कि समय क्या खाता होगा? क्या समय वेजिटेरियन है या नॉन–वेजिटेरियन, या कोहली की तरह वीगन? कहीं समय परजीवी तो नहीं? या कहीं ऐसा होता हो कि हर बीतते पल को आने वाला पल निगल जाता हो और डंग बीटल की तरह वक्त लुढ़कता चला जाता हो?

Duration: 00:02:54
Episode 9 - प्रेम गीत
Oct 01, 2024

तुम्हारे भरोसे का आधार तो मैं ही हूं फिर मेरे भरोसे का आधार तुम क्यों नहीं हो? क्या मैंने भविष्य देख लिया है या मुझे अतीत ने ही डस लिया है?

Duration: 00:03:02
Episode 9 - प्रेम गीत
Oct 01, 2024

तुम्हारे भरोसे का आधार तो मैं ही हूं फिर मेरे भरोसे का आधार तुम क्यों नहीं हो? क्या मैंने भविष्य देख लिया है या मुझे अतीत ने ही डस लिया है?

Duration: 00:03:09
Episode 8 - दुनियां का पहला आदमी
Sep 30, 2024

आदमी को जितना सोचना चाहिए, उससे ज़्यादा सोचने की बीमारी से वह अभिशप्त है।

Duration: 00:02:58
Episode 7 - Natgeo से Pogo
Sep 24, 2024

लड़ने से ज़्यादा न लड़ने का डर ज़्यादा बड़ा होता है। जब हम लड़ते हैं तो किसी से लड़ते हैं और जब हम लड़ना स्थगित करते हैं तो ख़ुद से लड़ते हैं। ख़ुद से लड़ने में हार ही हार है।

Duration: 00:03:19
Episode 6 - One Night Stand
Sep 17, 2024

परिचित गंध को अपरिचित शरीर में ढूंढने की जद्दोजहद

Duration: 00:03:02
Episode 5 - भूखे आदमी की फ़िक्र
Sep 11, 2024

मेरे लिए कभी किसी का पानी आंखों से उतर कर मट्टी में नहीं समाया। अगर समाया होता तो मैं उसे ढूंढ लेता हर उस कण में जहां उसके मिलने की उम्मीद होती और उसे बाहर खींचने में त्याग देता अपनी भी आंख का खारा पानी।

Duration: 00:02:51
Episode 4 - इस ख़्याल को रुक जाना चाहिए
Sep 10, 2024

कुछ लोग ख्यालों को दबाना सीख चुके हैं, वे लोग उदास हैं। कुछ ने अभी नहीं सीखा है, वे जल्दी में हैं, उन्हें उनके ख्याल से भी पहले कहीं पहुंचना है।

Duration: 00:02:53
Episode 3 - तुम irrelevant हो
Sep 10, 2024

जैसे ये शरीर की सुई थी, वैसी ही क्या कोई सिरेंज मन को टटोलने के लिए मिलती है? क्या मन की परतों में कोई सुई घुसाई जा सकती है और उसका हाल पता किया जा सकता है? क्या मन को कोई गोली देकर भटकाया जा सकता है, ख़ुश किया जा सकता है, कुछ भूलने को विवश किया जा सकता है। बात न मानने पर क्या मन की बाँह मरोड़ी जा सकती है या उसे चांटा लगाया जा सकता है?

Duration: 00:03:51
Episode 2 - Midlife Crisis
Sep 04, 2024

एक ख़्याल जब हम उसे ढूंढने की कोशिश करते हैं, जिससे हमनें प्यार किया था

Duration: 00:03:25
Episode 1 - दीवार की तरफ़
Aug 28, 2024

मैं इंतज़ार में था एक सुन्दर सुबह के, जब लगभग सब कुछ सुन्दर ही दिखाई दे। ऐसी सुबह कई बार आती-आती रह गई। फिर धीरे-धीरे मैंने उसकी चाहना ही छोड़ दी। मैं डूब गया कुहरे से सनी सुबहों में, धूसर दिनों में और रातों की कालिख़ में। मुझे मिलते रहे मेरे जैसे लुटे-पिटे लोग, 'जो सुन्दर सुबह हो सकती है इस सम्भावना से आज़ाद हो चुके थे।' हम साथ बैठ कर बात करते, साथ काम करते, साथ खाते-पीते पर उस सुन्दर सुबह का ज़िक्र करने से बचते। असल में हम सुंदरता से घबराने वाले लोग थे। हम वो लोग थे कि जब जीवन में प्रेम ख़ुद चल कर आता है तो भी हम संशय करते कि 'ऐसा हमारे साथ कैसे?'

Duration: 00:03:19